मात्र 46 सीटों वाली पार्टी की भी बन चुकी है केंद्र में सरकार

मात्र 46 सीटों वाली पार्टी की भी बन चुकी है केंद्र में सरकार

News Agency : आत्मसंतुष्टि के लिहाज से भी कुछ बातों का बहुत मतलब होता है। लेकिन जब इसी तरह की कोई बात चुनावों के मद्देनजर की जा रही हों, तो उसके निहितार्थ इस सबसे ज्यादा होते हैं। इसीलिए चुनाव प्रचार के दौरान हर नेता ऐसी-ऐसी बातें करता है जो उसके इच्छित मतदाताओं को लुभा सके और अपने पक्ष में खड़ा कर सके। कई बार ऐसा होता भी है कि वे मतदाता जिन्होंने अपना मन नहीं बनाया हुआ है, इस तरह की बातों में आ जाते हैं और फिर तय करते हैं कि किस पार्टी अथवा प्रत्याशी को वोट देना है।

कुछ उन लोगों को भी ऐसी बातें प्रभावित करती हैं जो मतदाता नहीं हैं लेकिन चुनावों के बारे में न केवल उनकी सोच होती है बल्कि लोगों के बीच होने वाले विचार-विमर्श में शामिल होते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करने की मंशा भी रखते हैं। अगर इस नजरिये से देखा जाए तो पता चलता है कि चुनाव प्रचार के दौरान की जाने वाली इस तरह की लोकलुभावन बातों का कितना महत्व होता है और किस तरह आम मतदाता उसे स्वीकार अथवा अस्वीकार करता है।इस चुनाव में हर पार्टी का बड़ा नेता अपने विमर्श लोगों के बीच लेकर जा रहा है।

इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बहराइच में हुई अपनी चुनावी सभा में एक बार फिर विपक्ष को निशाने पर लिया और यह बताने की कोशिश की कि अब विपक्ष कितना कमजोर हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनावी सभा में कहा है कि वह पार्टी अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रही है जो 2014 के चुनाव में लोकसभा में अपने सदस्यों की इतनी संख्या तक नहीं जुटा पाई थी कि विपक्ष का नेता पद हासिल कर सके। यह भी कहा कि जो पार्टी 50-55 सीट लेकर के विपक्ष का नेता बनाने की स्थिति में नहीं हैं, वो प्रधानमंत्री बनने के लिए दर्जी के पास कपड़े सिला रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि 2014 के लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी जनता ने तय किया है कि किसी पार्टी के पास विपक्ष का नेता पद हासिल करने जितनी संख्या नहीं आ पाएगी। जाहिर है पिछले चुनाव में किसी पार्टी को इतनी संख्या में सीटें नहीं मिल सकी थीं कि सदन में उसके नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा दिया जा सके।

उस चुनाव में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में वह कांग्रेस उभरी थी जिसकी पिछली लोकसभा में दो कार्यकाल की सरकार थी। लेकिन 2014 में चली मोदी लहर का परिणाम इस रूप में सामने आया कि कांग्रेस मात्र यद्यपि यह कोई पहला अवसर नहीं था जब सदन ने नेता प्रतिपक्ष नहीं रहा है। सन 1980 और 1984 में भी इस तरह की स्थिति बनी थी जब लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं था। इसके अलावा यह भी जानकारी है कि चौथी लोकसभा को छोड़कर आठवीं लोकसभा तक में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त रहा है। इसके पीछे कारण यही था कि किसी पार्टी के पास इतनी सदस्य संख्या नहीं थी कि उसके नेता को विपक्ष का नेता पद दिया जा सके। उल्लेखनीय है कि सदन में नेता विपक्ष पद के लिए उस पार्टी के पास सदन की न्यूनतम ten फीसदी सीटें होना आवश्यक है।

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